भोपाल। मुख्यमंत्री कमलनाथ की कैबिनेट के 22 मंत्री लोकसभा चुनाव में अपना किला (चुनाव क्षेत्र) सुरक्षित रखने में नाकामयाब रहे। यहां भाजपा के प्रत्याशियों को बढ़त मिली। सिर्फ छह मंत्री ही ऐसे रहे, जिनके यहां मोदी लहर अप्रभावी रही। हालांकि, इनका योगदान कांग्रेस उम्मीदवारों की पराजय का अंतर कम करने के काम ही आया। यह स्थिति तब है जब मुख्यमंत्री ने सभी मंत्रियों को सिर्फ अपने क्षेत्रों पर ध्यान देने के निर्देश के साथ चुनाव का दायित्व सौंपा था।
बताया जा रहा है कि मंत्रियों के काम करने के तौर- तरीकों का आकलन चुनाव नतीजों को मद्देनजर रखते हुए भी होगा। छह माह पहले कांग्रेस के 114 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। इनमें से 28 को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंत्री बनाया। पहली बार सभी के साथ समान व्यवहार करते हुए सीधे कैबिनेट मंत्री का दायित्व सौंपा गया।
लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सभी मंत्रियों को अपने गृह क्षेत्रों में कांग्रेस को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई। साथ ही मुख्यमंत्री ने यह भी निर्देश दिए कि कोई भी दूसरे क्षेत्र में जाकर काम नहीं करेगा। ज्यादातर मंत्रियों ने इसका पालन भी किया पर यह काम नहीं आया। लोकसभा चुनाव के नतीजों से साफ है कि मंत्रियों की क्षेत्रों में अभी पकड़ वैसी नहीं हुई है कि वे दूसरे को जिता सकें। एक मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इस चुनाव में जब हम कैम्पेन करने जाते थे तो वोटर कहता था कि भैया आपको वोट दे दिया पर किसी और को देने के लिए मत कहना। इसके मायने साफ हैं कि मतदाता अपना मन बना चुका था।
यही वजह है कि प्रदेश की 29 में से 28 सीटें जीतने में भाजपा कामयाब रही। एक मात्र छिंदवाड़ा सीट भी कांग्रेस की कम और मुख्यमंत्री कमलनाथ के व्यक्तिगत जीत ज्यादा मानी जाएगी। कांग्रेस सरकार के मंत्रियों की विधानसभा चुनाव में 932 से लेकर 57 हजार वोट की बढ़त थी लेकिन यह छह माह भी बरकरार नहीं रही।
